🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज से मैं श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारहवें एवं अंतिम अध्याय  'मोक्षसंन्यासयोग' का आरंभ कर रहा हूँ । 


अर्जुन उवाच -

संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम् ।

त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ॥

(अध्याय 18, श्लोक 1)


इस श्लोक का भावार्थ : अर्जुन कहते हैं - हे महाबाहो! हे अन्तर्यामिन्‌! हे वासुदेव! मैं संन्यास और त्याग के तत्त्व को अलग-अलग जानना चाहता हूँ।


श्रीभगवानुवाच -

काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः ।

सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः ॥

(अध्याय 18, श्लोक 2)


इस श्लोक का भावार्थ : श्री भगवान कहते हैं - कुछ कवि (विद्वान) तो काम्य कर्मों के त्याग को संन्यास समझते हैं पर दूसरे विचारक सभी कर्मों के फल-त्याग को त्याग कहते हैं। 


शुभ रविवार ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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