🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों आज के ये दो श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय सत्रह 'श्रद्धात्रयविभागयोग' से ही ....
विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम् ।
श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते ॥
(अध्याय 17, श्लोक 13)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से बोले) - शास्त्रविधि से हीन, अन्नदान से रहित, बिना मन्त्रों के, बिना दक्षिणा के और बिना श्रद्धा के किए जाने वाले यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं।
देवद्विजगुरुप्राज्ञ पूजनं शौचमार्जवम् ।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ॥
(अध्याय 17, श्लोक 14)
इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान् बोले) - देवता, ब्राह्मण, गुरु (यहाँ 'गुरु' शब्द से माता, पिता, आचार्य और वृद्ध एवं अपने से जो किसी प्रकार भी बड़े हों, उन सबको समझना चाहिए।) और ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा- यह शरीर- सम्बन्धी तप कहा जाता है।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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