🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏


मित्रों आज के ये दो श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय सत्रह 'श्रद्धात्रयविभागयोग' से ही ....


अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते ।

यष्टव्यमेवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः ॥
(अध्याय 17, श्लोक 11)

इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से बोले) - जो शास्त्र विधि से नियत, यज्ञ करना ही कर्तव्य है- इस प्रकार मन को समाधान करके, फल न चाहने वाले पुरुषों द्वारा किया जाता है, वह सात्त्विक है।

            

अभिसंधाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत् ।
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम् ॥
(अध्याय 17, श्लोक 12)

इस श्लोक का भावार्थ : श्री भगवान्‌ बोले - परन्तु हे अर्जुन ! केवल दम्भाचरण के लिए अथवा फल को भी दृष्टि में रखकर जो यज्ञ किया जाता है, उस यज्ञ को तू राजस जान।

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत माथुर 
ग़ाज़ियाबाद।

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