🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज भी श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय सत्रह 'श्रद्धात्रयविभागयोग' से ही ये दो श्लोक .....


सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत ।

श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः ॥

(अध्याय 17, श्लोक 3)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से बोले) - हे भारत! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अन्तःकरण के अनुरूप होती है। यह पुरुष श्रद्धामय है, इसलिए जो पुरुष जैसी श्रद्धावाला है, वह स्वयं भी वही है। 


यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः ।

प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः ॥

(अध्याय 17, श्लोक 4)


इस श्लोक का भावार्थ : श्री भगवान्‌ बोले-  सात्त्विक पुरुष देवों को पूजते हैं, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसों को तथा अन्य जो तामस मनुष्य हैं, वे प्रेत और भूतगणों को पूजते हैं।


शुभ दिन ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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