🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय  'दैवासुरसम्पद्विभागयोगः' के ये दो अंतिम श्लोक ......


यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः ।

न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ॥

(अध्याय 16, श्लोक 23)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण बोले) जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को ही । 


तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ ।

ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि ॥

(अध्याय 16, श्लोक 24)


इस श्लोक का भावार्थ :इससे तेरे लिए इस कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है। ऐसा जानकर तू शास्त्र विधि से नियत कर्म ही करने योग्य है।


शुभ शनिवार ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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