एक ग़ज़ल .....
उनके दिल से निकाले गए,
फ़िर न मुंह में निवाले गए।
जिसको चाहा मिला वो नहीं,
रोज़ मदिर शिवाले गए।
दर्द हमको जो उनसे मिले,
वो न हमसे संभाले गए ।
सांप थे,वो तो डसते मगर,
आस्तीनों में पाले गए।
सख़्त हैं इतनी पाबंदियां,
पड़ नफ़स तक के लाले गए ।
इतनी दहशत नगर में मची,
ख़ूब पत्थर उछाले गए।
हाथ जिसके भी जो शय लगी,
वो उसी को उठा ले गए।
(नफ़स-साँस)
© पुनीत माथुर, ग़ाज़ियाबाद
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