एक ग़ज़ल .....
हमारा दिल दुखाना चाहिए था,
तो हमसे रूठ जाना चाहिए था।
मुहब्बत थी तुम्हें भी तो बताते,
न यूँ हमसे छुपाना चाहिए था।
तुम्हारे और हमारे दरमियाँ भी,
इक उल्फ़त का फ़साना चाहिए था।
जगह देते हमें तुम अपने दिल में,
हमें भी तो ठिकाना चाहिए था ।
मुहब्बत का सफ़र काँटों भरा है,
क़दम फ़िर भी बढ़ाना चाहिए था।
तुम्हें लगता है ग़र सब बेवफ़ा हैं,
हमें भी आज़माना चाहिए था ।
हमेशा ख़ुद के ही बारे में सोचा,
किसी के काम आना चाहिए था।
© पुनीत माथुर, ग़ाज़ियाबाद
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