🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज के ये दो श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'दैवासुरसम्पद्विभागयोगः' से ही .....


काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः ।

मोहाद्‌गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः ॥

(अध्याय 16, श्लोक 10)


इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान बोले) वे दम्भ, मान और मद से युक्त मनुष्य किसी प्रकार भी पूर्ण न होने वाली कामनाओं का आश्रय लेकर, अज्ञान से मिथ्या सिद्धांतों को ग्रहण करके भ्रष्ट आचरणों को धारण करके संसार में विचरते हैं।


चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः ।

कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः ॥

(अध्याय 16, श्लोक 11)


इस श्लोक का भावार्थ : तथा वे मृत्युपर्यन्त रहने वाली असंख्य चिन्ताओं का आश्रय लेने वाले, विषयभोगों के भोगने में तत्पर रहने वाले और 'इतना ही सुख है' इस प्रकार मानने वाले होते हैं। 


शुभ रविवार ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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