🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 

 

मित्रों आज के ये दो श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'दैवासुरसम्पद्विभागयोगः' से ही .....


असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम् ।

अपरस्परसंभूतं किमन्यत्कामहैतुकम् ॥

(अध्याय 16, श्लोक 8)


इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान बोले)वे आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य कहा करते हैं कि जगत्‌ आश्रयरहित, सर्वथा असत्य और बिना ईश्वर के, अपने-आप केवल स्त्री-पुरुष के संयोग से उत्पन्न है, अतएव केवल काम ही इसका कारण है। इसके सिवा और क्या है? 


एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः ।

प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः ॥

(अध्याय 16, श्लोक 9)


इस श्लोक का भावार्थ : इस मिथ्या ज्ञान को अवलम्बन करके- जिनका स्वभाव नष्ट हो गया है तथा जिनकी बुद्धि मन्द है, वे सब अपकार करने वाले क्रुरकर्मी मनुष्य केवल जगत्‌ के नाश के लिए ही समर्थ होते हैं।


शुभ शनिवार ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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