🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


आज के ये दो श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'दैवासुरसम्पद्विभागयोगः' से ही .....


दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च ।

अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम् ॥

(अध्याय 16, श्लोक 4)


इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान बोले)- हे पार्थ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं।


दैवी संपद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता ।

मा शुचः संपदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥

(अध्याय 16, श्लोक 5)


इस श्लोक का भावार्थ : दैवी सम्पदा मुक्ति के लिए और आसुरी सम्पदा बाँधने के लिए मानी गई है। इसलिए हे अर्जुन ! तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुआ है।


शुभ दिन ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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