🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज के ये दो श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'पुरुषोत्तम योग' से ही लिए हैं ....


यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि    चोत्तमः ।

अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः ॥

(अध्याय 15, श्लोक 18)


यो मामेवमसंमूढो  जानाति  पुरुषोत्तमम् ।

स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥

(अध्याय 15, श्लोक 19)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं) - क्योंकि मैं नाशवान जड़वर्ग- क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिए लोक में और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ।

भारत! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्त्व से पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है।


शुभ रविवार ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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