🙏जय श्री राधे कृष्णा🙏 


मित्रों आज के ये दो श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'पुरुषोत्तम योग' से ही लिए हैं ....


द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।

क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥

(अध्याय 15, श्लोक 16)


उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः ।

यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥

(अध्याय 15, श्लोक 17)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं) - इस संसार में नाशवान और अविनाशी भी ये दो प्रकार के पुरुष हैं। इनमें सम्पूर्ण भूतप्राणियों के शरीर तो नाशवान और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है।

इन दोनों से उत्तम पुरुष तो अन्य ही है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर और परमात्मा- इस प्रकार कहा गया है।


शुभ शनिवार ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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