🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों आज का ये बहुत सुंदर श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'पुरुषोत्तम योग' से ही ....
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः ।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥
(अध्याय 15, श्लोक 14)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को स्वयं कीे प्रकृति बता रहे हैं) - मैं ही सब प्राणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर अग्नि रूप होकर चार (भक्ष्य, भोज्य, लेह्य और चोष्य, ऐसे चार प्रकार के अन्न होते हैं, उनमें जो चबाकर खाया जाता है, वह 'भक्ष्य' है- जैसे रोटी आदि। जो निगला जाता है, वह 'भोज्य' है- जैसे दूध आदि तथा जो चाटा जाता है, वह 'लेह्य' है- जैसे चटनी आदि और जो चूसा जाता है, वह 'चोष्य' है- जैसे ईख आदि) प्रकार के अन्न को पचाता हूँ।
आपका दिन मंगलमय हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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