🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों आज के ये दो श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'पुरुषोत्तम योग' से ही लिए हैं ....
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्॥
(अध्याय 15, श्लोक 12)
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ॥
(अध्याय 15, श्लोक 13)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को स्वयं कीे प्रकृति बता रहे हैं) - सूर्य में स्थित जो तेज सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करता है तथा जो तेज चन्द्रमा में है और जो अग्नि में है- उसको तू मेरा ही तेज जान।
और मैं ही पृथ्वी में प्रवेश करके अपनी शक्ति से सब भूतों को धारण करता हूँ और रसस्वरूप अर्थात अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण ओषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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