🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों आज भी श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'पुरुषोत्तम योग' से दो चुनिंदा श्लोक..
यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः ।
गृहित्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात् ॥
(अध्याय 15, श्लोक 8)
श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च ।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते ॥
(अध्याय 15, श्लोक 9)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं)- वायु गन्ध के स्थान से गन्ध को जैसे ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादिका स्वामी जीवात्मा भी जिस शरीर का त्याग करता है, उससे इन मन सहित इन्द्रियों को ग्रहण करके फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है- उसमें जाता है।
यह जीवात्मा श्रोत्र(कान), चक्षु(आंख) और त्वचा को तथा रसना, घ्राण और मन को आश्रय करके -अर्थात इन सबके सहारे से ही विषयों का सेवन करता है।
आपका दिन मंगलमय हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
Post A Comment: