🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों आज के इन दो श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण बता रहे हैं कि किसी पुरुष को भगवान की प्राप्ति होती है ....
मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
स गुणान्समतीत्यैतान्- ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥
(अध्याय 14, श्लोक 26)
ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहम मृतस्याव्ययस्य च ।
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च ॥
(अध्याय 14, श्लोक 27)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं)- और जो पुरुष अव्यभिचारी भक्ति योग (केवल एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर वासुदेव भगवान को ही अपना स्वामी मानता हुआ, स्वार्थ और अभिमान को त्याग कर श्रद्धा और भाव सहित परम प्रेम से निरन्तर चिन्तन करने को 'अव्यभिचारी भक्तियोग' कहते हैं) द्वारा मुझको निरन्तर भजता है, वह भी इन तीनों गुणों को भलीभाँति लाँघकर सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त होने के लिए योग्य बन जाता है।
क्योंकि उस अविनाशी परब्रह्म का और अमृत का तथा नित्य धर्म का और अखण्ड एकरस आनन्द का आश्रय मैं हूँ।
शुभ दिन !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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