🙏जय श्री राधे कृष्णा🙏
मित्रों आज के ये दो श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के चौदहवें अध्याय 'गुणत्रयविभागयोग' से ही हैं ...
रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम् ।
तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम् ॥
(अध्याय 14, श्लोक 7)
तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् ।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्- तन्निबध्नाति भारत ॥
(अध्याय 14, श्लोक 8)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं)- हे अर्जुन! रागरूप रजोगुण को कामना और आसक्ति से उत्पन्न जान। वह इस जीवात्मा को कर्मों और उनके फल के सम्बन्ध में बाँधता है।
हे अर्जुन ! सब देहाभिमानियों को मोहित करने वाले तमोगुण को तो अज्ञान से उत्पन्न जान। वह इस जीवात्मा को प्रमाद (इंद्रियों और अंतःकरण की व्यर्थ चेष्टाओं का नाम 'प्रमाद' है), आलस्य (कर्तव्य कर्म में अप्रवृत्तिरूप निरुद्यमता का नाम 'आलस्य' है) और निद्रा द्वारा बाँधता है।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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