🙏 जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज से मैं श्रीमद्भगवद्गीता के चौदहवें अध्याय 'गुणत्रयविभागयोग' से दो चुनिंदा श्लोक प्रस्तुत कर रहा हूँ ....


सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवाः ।

निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥

(अध्याय 14, श्लोक 5)


तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् ।

सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ॥

(अध्याय 14, श्लोक 6)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं)-  हे अर्जुन ! सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण - ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं। 

हे निष्पाप! उन तीनों गुणों में सत्त्वगुण तो निर्मल होने के कारण प्रकाश करने वाला और विकार रहित है, वह सुख के सम्बन्ध से और ज्ञान के सम्बन्ध से अर्थात उसके अभिमान से बाँधता है।  


शुभ रविवार  ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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