🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏


मित्रों ये दोनों श्लोक भी  श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग' से ...


यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः ।

क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 34)


क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा ।

भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्‌ ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 35)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं)-  हे भरतवंशी अर्जुन! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार शरीर में स्थित एक ही आत्मा सम्पूर्ण शरीर को अपनी चेतना से प्रकाशित करता है। 

जो मनुष्य इस प्रकार शरीर और शरीर के स्वामी के अन्तर को अपने ज्ञान नेत्रों से देखता है तो वह जीव प्रकृति से मुक्त होने की विधि को जानकर मेरे परम-धाम को प्राप्त होता हैं। 


शुभ शनिवार  ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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