🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों ये दोनों श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग' से ...
प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः ।
यः पश्यति तथात्मानमकर्तारं स पश्यति ॥
(अध्याय 13, श्लोक 30)
यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति ।
तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा ॥
(अध्याय 13, श्लोक 31)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं)- जो मनुष्य समस्त कार्यों को सभी प्रकार से प्रकृति के द्वारा ही सम्पन्न होते हुए देखता है और आत्मा को अकर्ता देखता है, वही यथार्थ रूप से देखता है।
जब जो मनुष्य सभी प्राणीयों के अलग-अलग भावों में एक परमात्मा को ही स्थित देखता है और उस एक परमात्मा से ही समस्त प्राणीयों का विस्तार देखता है, तब वह परमात्मा को ही प्राप्त होता है।
शुभ गुरुवार !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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