🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज के ये श्लोक भी  श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग' से ...


य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह ।

सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 24)


ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना ।

अन्ये साङ्‍ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 25)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को प्रकृति-पुरुष-परमात्मा के संबंध बारे में बता रहे हैं)- जो मनुष्य इस प्रकार जीव को प्रकृति के गुणों के साथ ही जानता है वह वर्तमान में किसी भी परिस्थिति में स्थित होने पर भी सभी प्रकार से मुक्त रहता है और वह फिर से जन्म को प्राप्त नही होता है। 

कुछ मनुष्य ध्यान-योग में स्थित होकर परमात्मा को अपने अन्दर हृदय में देखते हैं, कुछ मनुष्य वैदिक कर्मकाण्ड के अनुशीलन के द्वारा और अन्य मनुष्य निष्काम कर्म-योग द्वारा परमात्मा को प्राप्त होते हैं।  


आपका दिन मंगलमय हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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