🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों आज के ये श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग' से ...
पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान् ।
कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ॥
(अध्याय 13, श्लोक 22)
उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः ।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः ॥
(अध्याय 13, श्लोक 23)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को प्रकृति-पुरुष-परमात्मा के संबंध बारे में बता रहे हैं)- भौतिक प्रकृति में स्थित होने के कारण ही प्राणी, प्रकृति के तीनों गुणों से उत्पन्न पदार्थों को भोगता है और प्रकृति के गुणों की संगति के कारण ही जीव उत्तम और अधम योनियाँ में जन्म को प्राप्त होता रहता है।
सभी शरीरों का पालन-पोषण करने वाला परमेश्वर ही भौतिक प्रकृति का भोक्ता साक्षी-भाव में स्थित होकर अनुमति देने वाला है, जो कि इस शरीर में आत्मा के रूप में स्थित होकर परमात्मा कहलाता है। गुणों से उत्पन्न हुआ ही समझ।
शुभ दिन !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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