🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों आज के ये श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग' से ...
प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि ।
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसम्भवान् ॥
(अध्याय 13, श्लोक 20)
कार्यकरणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते ।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ॥
(अध्याय 13, श्लोक 21)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को प्रकृति-पुरुष के संबंध बारे में बता रहे हैं)-हे अर्जुन! इस प्रकृति (भौतिक जड़ प्रकृति) एवं पुरुष (परमात्मा) इन दोनों को ही तू निश्चित रूप से अनादि समझ और राग-द्वेष आदि विकारों को प्रकृति के तीनों गुणों से उत्पन्न हुआ ही समझ।
जिसके द्वारा कार्य उत्पन्न किये जाते है और जिसके द्वारा कार्य सम्पन्न किये जाते है उसे ही भौतिक प्रकृति कहा जाता है, और जीव (प्राणी) सुख तथा दुःख के भोग का कारण कहा जाता है।
शुभ रविवार !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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