🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज के ये श्लोक भी  श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग' से ...


अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम्‌ ।

भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 17)


ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते ।

ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्‌ ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 18)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को परमात्मा के स्वरूप के बारे में  बता रहे हैं)-वह परमात्मा सभी प्राणीयों में अलग-अलग स्थित होते हुए भी एक रूप में ही स्थित रहता है, यद्यपि वही समस्त प्राणीयों को ब्रह्मा-रूप से उत्पन्न करने वाला है, विष्णु-रूप से पालन करने वाला है और रुद्र-रूप से संहार करने वाला है। 

वह परमात्मा सभी प्रकाशित होने वाली वस्तुओं के प्रकाश का मूल स्रोत होते हुए भी अन्धकार से परे स्थित रहता है, वही ज्ञान-स्वरूप (आत्मा) है, वही जानने योग्य (परमात्मा) है, वही ज्ञान स्वरूप (आत्मा) द्वारा प्राप्त करने वाला लक्ष्य है और वही सभी के हृदय में विशेष रूप से स्थित रहता है। 


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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