घुटन,ग़म,बेबसी और बेकसी की,
फ़क़त ये दास्तां है ज़िंदगी की।
समझना ख़ून के रिश्तों से बढ़ कर,
अगर तुमने किसी से दोस्ती की।
मुक़म्मल है नहीं कोई भी इंसाँ,
बुराई मत करो देखो किसी की।
है बस पैसा उड़ाना शौक़ जिनका,
समझ उनको नहीं है मुफ़लिसी की।
करो पहले किसी के घर को रौशन,
अगर है चाह दिल में रौशनी की।
मिला जो क़द्र उसकी कर न पाए,
तभी कुदरत ने नेमत में कमी की।
लड़ाए नाम पर मजहब के सबको,
सियासत चल रही है बस उसी की।
- पुनीत माथुर
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