🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ! 


मित्रों आज के ये श्लोक भी  श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग' से ...


सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्‌ ।

असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 15)


बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च ।

सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञयं दूरस्थं चान्तिके च तत्‌ ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 16)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को परमात्मा के स्वरूप के बारे में  बता रहे हैं)- वह परमात्मा समस्त इन्द्रियों का मूल स्रोत है, फिर भी वह सभी इन्द्रियों से परे स्थित रहता है वह सभी का पालन-कर्ता होते हुए भी अनासक्त भाव में स्थित रहता है और वही प्रकृति के गुणों (सत, रज, तम) से परे स्थित होकर भी समस्त गुणों का भोक्ता है। 

वह परमात्मा चर-अचर सभी प्राणियों अन्दर और बाहर भी स्थित है, उसे अति-सूक्ष्म होने के कारण इन्द्रियों के द्वारा नही जाना जा सकता है, वह अत्यन्त दूर स्थित होने पर भी सभी प्राणीयों के अत्यन्त पास भी वही स्थित है।  


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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