🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों आज के ये श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ  विभाग योग' से ...


महाभूतान्यहङ्‍कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ।

इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 6)


इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्‍घातश्चेतना धृतिः ।

एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्‌ ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 7)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को मानव शारीरिक के विषय में बता रहे हैं)- हे अर्जुन! यह क्षेत्र पंच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश), अहंकार, बुद्धि, प्रकृति के अव्यक्त तीनों गुण (सत, रज, और तम), दस इन्द्रियाँ (कान, त्वचा, आँख, जीभ, नाक, हाथ, पैर, मुख, उपस्थ और गुदा), एक मन, पाँच इन्द्रियों के विषय (शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध)। इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, चेतना और धारणा वाला यह समूह ही विकारों वाला पिण्ड रूप शरीर है जिसके बारे में संक्षेप में कहा गया है। 


आपका दिन मंगलमय हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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