🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों आज से मैं  श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग' से  चुनिंदा श्लोक  प्रस्तुत  कर  रहा हूँ .....


अर्जुन उवाच

प्रकृतिं पुरुषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च ।

एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 1)


इस श्लोक का भावार्थ : अर्जुन ने पूछा - हे केशव! मैं आपसे प्रकृति एवं पुरुष, क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ और ज्ञान एवं ज्ञान के लक्ष्य के विषय में जानना चाहता हूँ । 


श्रीभगवानुवाच

इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते ।

एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 2)


इस श्लोक का भावार्थ : श्री भगवान ने कहा - हे कुन्तीपुत्र! यह शरीर ही क्षेत्र (कर्म-क्षेत्र) कहलाता है और जो इस क्षेत्र को जानने वाला है, वह क्षेत्रज्ञ (आत्मा) कहलाता है, ऎसा तत्व रूप से जानने वाले महापुरुषों द्वारा कहा गया हैं। 


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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