🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏
आज के ये दोनों श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के बारहवें अध्याय 'भक्ति योग' से ही .....
समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः ।
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ॥
(अध्याय 12, श्लोक 18)
इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान अर्जुन से कह रहे हैं)- जो शत्रु-मित्र में और मान-अपमान में सम है तथा सर्दी, गर्मी और सुख-दुःखादि द्वंद्वों में सम है और आसक्ति से रहित है।
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् ।
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः ॥
(अध्याय 12, श्लोक 19)
इस श्लोक का भावार्थ : जो निंदा-स्तुति को समान समझने वाला, मननशील और जिस किसी प्रकार से भी शरीर का निर्वाह होने में सदा ही संतुष्ट है और रहने के स्थान में ममता और आसक्ति से रहित है- वह स्थिरबुद्धि भक्तिमान पुरुष मुझको प्रिय है।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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