🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों ये दोनों श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के बारहवें अध्याय 'भक्ति योग' से ही .....


अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः ।

सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः ॥

(अध्याय 12, श्लोक 16)


इस श्लोक का भावार्थ : जो पुरुष आकांक्षा से रहित, बाहर-भीतर से शुद्ध, चतुर, पक्षपात से रहित और दुःखों से छूटा हुआ है- वह सब आरम्भों का त्यागी मेरा भक्त मुझको प्रिय है। 


यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति ।

शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः ॥

(अध्याय 12, श्लोक 17)


इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान अर्जुन से कह रहे हैं) -जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है- वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है। 


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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