🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏
आज के ये दोनों श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के बारहवें अध्याय 'भक्ति योग' से ही .....
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च ।
निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी ॥
(अध्याय 12, श्लोक 13)
संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः ॥
(अध्याय 12, श्लोक 14)
इन दोनों श्लोकों का भावार्थ : (श्री भगवान अर्जुन से कह रहे हैं) -मर्म को न जानकर किए हुए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है, ज्ञान से मुझ परमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है और ध्यान से सब कर्मों के फल का त्याग श्रेष्ठ है, क्योंकि त्याग से तत्काल ही परम शान्ति होती है।
शुभ दिन !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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