🙏 जय श्री राधे कृष्ण🙏
आज के श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन की अन्यन भक्ति द्वारा प्राप्ति की सुगमता का वर्णन कर रहे हैं ...
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन ।
ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥
(अध्याय 11, श्लोक 54)
इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान ने कहा) - हे परन्तप अर्जुन! केवल अनन्य भक्ति के द्वारा ही मेरा साक्षात दर्शन किया जा सकता है, वास्तविक स्वरूप को जाना जा सकता है और इसी विधि से मुझमें प्रवेश भी पाया जा सकता है।
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः ।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव ॥
(अध्याय 11, श्लोक 55)
इस श्लोक का भावार्थ : हे पाण्डुपुत्र! जो मनुष्य केवल मेरी शरण होकर मेरे ही लिए सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को करता है, मेरी भक्ति में स्थित रहता है, सभी कामनाओं से मुक्त रहता है और समस्त प्राणियों से मैत्रीभाव रखता है, वह मनुष्य निश्चित रूप से मुझे ही प्राप्त करता है।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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