जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


आज के श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का वर्णन कर रहे हैं ...


श्रीभगवानुवाच

सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम ।

देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्‍क्षिणः ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 52)


इस श्लोक का भावार्थ : श्री भगवान ने कहा - मेरा जो चतुर्भज रूप तुमने देखा है, उसे देख पाना अत्यन्त दुर्लभ है देवता भी इस शाश्वत रूप के दर्शन की आकांक्षा करते रहते हैं। 


नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया ।

शक्य एवं विधो द्रष्टुं दृष्ट्वानसि मां यथा ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 53)


इस श्लोक का भावार्थ : मेरे इस चतुर्भुज रूप को जिसको तेरे द्वारा देखा गया है इस रूप को न वेदों के अध्यन से, न तपस्या से, न दान से और न यज्ञ से ही देखा जाना संभव है।   


शुभ दिन ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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