🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


आज के श्लोकों में भगवान द्वारा विश्वरूप के दर्शन की महिमा का वर्णन किया जा रहा है ....


मा ते व्यथा मा च विमूढभावोदृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्‍ममेदम्‌ ।

व्यतेपभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वंतदेव मे रूपमिदं प्रपश्य ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 49)


इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान ने कहा)- हे मेरे परम-भक्त! तू मेरे इस विकराल रूप को देखकर न तो अधिक विचलित हो, और न ही मोहग्रस्त हो, अब तू पुन: सभी चिन्ताओं से मुक्त होकर प्रसन्न-चित्त से मेरे इस चतुर्भुज रूप को देख। 


संजय उवाच

इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः ।

आश्वासयामास च भीतमेनंभूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 50)


इस श्लोक का भावार्थ : संजय ने कहा - वासुदेव भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से इस प्रकार कहने के बाद अपना विष्णु स्वरूप चतुर्भुज रूप को प्रकट किया और फिर दो भुजाओं वाले मनुष्य स्वरूप को प्रदर्शित करके भयभीत अर्जुन को धैर्य बँधाया।  


आपका दिन शुभ हो  !  


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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