🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


आज के ये दो श्लोक भी ग्यारहवें अध्याय 'विश्व रूप दर्शन योग' से ही हैं। आज के श्लोकों में अर्जुन श्री कृष्ण से विराट रूप छोड़ कर पुनः चतुर्भुज रूप में आने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं....


अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे ।

तदेव मे दर्शय देवरूपंप्रसीद देवेश जगन्निवास ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 45)


इस श्लोक का भावार्थ : पहले कभी न देखे गए आपके इस रूप को देखकर मैं हर्षित हो रहा हूँ और साथ ही मेरा मन भय के कारण विचलित भी हो रहा है, इसलिए हे देवताओं के स्वामी ! हे जगत के आश्रय ! आप मुझ पर प्रसन्न होकर अपने पुरूषोत्तम रूप को मुझे दिखलाइए।  


किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव ।

तेनैव रूपेण चतुर्भुजेनसहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 46)


इस श्लोक का भावार्थ : हे हजारों भुजाओं वाले विराट स्वरूप भगवान ! मैं आपके मुकुट धारण किए हुए और हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म लिए रूप का दर्शन करना चाहता हूँ, कृपा करके आप चतुर्भुज रूप में प्रकट हों।  


शुभ दिन !  


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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