🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


आज के ये दो श्लोक भी ग्यारहवें अध्याय 'विश्व रूप दर्शन योग' से ही हैं। आज के श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण का विराट रूप देख कर भययुक्त अर्जुन श्री कृष्ण से कह रहे हैं....


पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्‌ ।

न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 43)


इस श्लोक का भावार्थ : (अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से कह रहे हैं) आप इस चल और अचल जगत के पिता और आप ही इस जगत में पूज्यनीय आध्यात्मिक गुरु हैं, हे अचिन्त्य शक्ति वाले प्रभु! तीनों लोकों में अन्य न तो कोई आपके समान हो सकता हैं और न ही कोई आपसे बढकर हो सकता है। 


तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायंप्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्‌ ।

पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्‌ ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 44)


इस श्लोक का भावार्थ : अत: मैं समस्त जीवों के पूज्यनीय भगवान के चरणों में गिरकर साष्टाँग प्रणाम करके आपकी कृपा के लिए प्रार्थना करता हूँ, हे मेरे प्रभु! जिस प्रकार पिता अपने पुत्र के अपराधों को, मित्र अपने मित्र के अपराधों को और प्रेमी अपनी प्रिया के अपराधों को सहन कर लेता हैं उसी प्रकार आप मेरे अपराधों को सहन करने की कृपा करें। 


आपका दिन शुभ हो !  


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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