🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


आज के ये दो श्लोक भी ग्यारहवें अध्याय 'विश्व रूप दर्शन योग' से ही हैं। आज के श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण का विराट रूप देख कर भययुक्त अर्जुन श्री कृष्ण से कह रहे हैं....


सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति ।

अजानता महिमानं   तवेदंमया प्रमादात्प्रणयेन   वापि ॥ 


यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु ।

एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षंतत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्‌ ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 41,42)


इस श्लोक का भावार्थ : आपको अपना मित्र मानकर मैंने हठपूर्वक आपको हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखा ! इस प्रकार आपकी महिमा को जाने बिना मूर्खतावश या प्रेमवश जो कुछ कहा है, हे अच्युत ! यही नही हँसी-मजाक में आराम करते हुए, सोते हुए, बैठते हुए या भोजन करते हुए, कभी अकेले में या कभी मित्रों के सामने मैंने आपका जो अनादर किया है उन सभी अपराधों के लिये मैं क्षमा माँगता हूँ। 


आपका दिन मंगलमय हो !  


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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