🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


आज के ये दो श्लोक भी ग्यारहवें अध्याय 'विश्व रूप दर्शन योग' से ही हैं। आज के श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण का विराट रूप देख कर भययुक्त अर्जुन श्री कृष्ण से कह रहे हैं....


त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌ ।

वेत्तासि वेद्यं च परं च   धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 38)


इस श्लोक का भावार्थ : (अर्जुन ने कहा) - आप आदि देव सनातन पुरुष हैं, आप इस संसार के परम आश्रय हैं, आप जानने योग्य हैं तथा आप ही जानने वाले हैं, आप ही परम धाम हैं और आप के ही द्वारा यह संसार अनन्त रूपों में व्याप्त हैं। 


वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।

नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 39)


इस श्लोक का भावार्थ :आप वायु, यम, अग्नि, वरुण, चन्द्रमा तथा सभी प्राणीयों के पिता ब्रह्मा भी है और आप ही ब्रह्मा के पिता भी हैं, आपको बारम्बार नमस्कार! आपको हजारों बार नमस्कार! नमस्कार हो!! फिर भी आपको बार-बार नमस्कार! करता हूँ। 


आपका दिन शुभ हो !  


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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