🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


आज के ये दो श्लोक भी ग्यारहवें अध्याय 'विश्व रूप दर्शन योग' से ही हैं। आज के श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण का विराट रूप देख कर भययुक्त अर्जुन श्री कृष्ण से कह रहे हैं....


अर्जुन उवाच

स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्‍घा: ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 36)


इस श्लोक का भावार्थ : अर्जुन ने कहा - हे अन्तर्यामी प्रभु! यह उचित ही है कि आपके नाम के कीर्तन से सम्पूर्ण संसार अत्यन्त हर्षित होकर आपके प्रति अनुरक्त हो रहा है तथा आसुरी स्वभाव के प्राणी आपके भय के कारण इधर-उधर भाग रहे हैं और सभी सिद्ध पुरुष आपको नमस्कार कर रहे हैं। 


कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्‌ गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे ।

अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्‌ ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 37)


इस श्लोक का भावार्थ : हे महात्मा ! यह सभी श्रेष्ठजन आपको नमस्कार क्यों न करें क्योंकि आप ही ब्रह्मा को भी उत्पन्न करने वाले हैं, हे अनन्त! हे देवादिदेव! हे जगत के आश्रय! आप अविनाशी, समस्त कारणों के मूल कारण, और आप ही परमतत्व है। 


शुभ दिन !  


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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