🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


आज के ये दो श्लोक भी ग्यारहवें अध्याय 'विश्व रूप दर्शन योग' से ही हैं। इन श्लोकों में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण का विराट रूप देखते हुए उसका वर्णन कर रहे हैं। 


यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।

तथा तवामी नरलोकवीराविशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥  

(अध्याय 11, श्लोक 28)


इस श्लोक का भावार्थ : (अर्जुन कह रहे हैं)  जिस प्रकार नदियों की अनेकों जल धारायें बड़े वेग से समुद्र की ओर दौड़तीं हुयी प्रवेश करती हैं, उसी प्रकार सभी मनुष्य लोक के वीर योद्धा भी आपके आग उगलते हुए मुखों में प्रवेश कर रहे हैं। 


यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतंगाविशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः ।

तथैव नाशाय विशन्ति लोकास्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः ॥  

(अध्याय 11, श्लोक 29)


इस श्लोक का भावार्थ : (अर्जुन कह रहे हैं) जिस प्रकार पतंगे अपने विनाश के लिये जलती हुयी अग्नि में बड़ी तेजी से प्रवेश करते हैं, उसी प्रकार यह सभी लोग भी अपने विनाश के लिए बहुत तेजी से आपके मुखों में प्रवेश कर रहे हैं। 


आपका दिन मंगलमय हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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