🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏
मित्रों आज के ये श्लोक भी ग्यारहवें अध्याय 'विश्व रूप दर्शन योग' से ही हैं। इन श्लोकों में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण का विराट रूप देखते हुए उसका वर्णन कर रहे हैं ....
द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः ।
दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदंलोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् ॥
(अध्याय 11, श्लोक 20)
इस श्लोक का भावार्थ : (अर्जुन ने कहा) हे महापुरूष ! सम्पूर्ण आकाश से लेकर पृथ्वी तक के बीच केवल आप ही अकेले सभी दिशाओं में व्याप्त हैं और आपके इस भयंकर आश्चर्यजनक रूप को देखकर तीनों लोक भयभीत हो रहे हैं।
अमी हि त्वां सुरसंघा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति ।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसंघा स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः ॥
(अध्याय 11, श्लोक 21)
इस श्लोक का भावार्थ : सभी देवों के समूह आप में प्रवेश कर रहे हैं उनमें से कुछ भयभीत होकर हाथ जोड़कर आपका गुणगान कर रहे हैं, और महर्षिगण और सिद्धों के समूह 'कल्याण हो' इस प्रकार कहकर उत्तम वैदिक स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति कर रहे हैं।
आपका दिन मंगलमय हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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