🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


आज के ये श्लोक भी ग्यारहवें  अध्याय  'विश्व रूप दर्शन योग' से ही लिए गए हैं। इन श्लोकों में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण का विराट रूप देखते हुए उसका वर्णन कर रहे हैं ....


त्वमक्षरं परमं वेदितव्यंत्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌ ।

त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 18)


इस श्लोक का भावार्थ : (अर्जुन ने कहा)हे भगवन ! आप ही जानने योग्य परब्रह्म परमात्मा हैं, आप ही इस जगत के परम-आधार हैं, आप ही अविनाशी सनातन धर्म के पालक हैं और मेरी समझ से आप ही अविनाशी सनातन पुरुष हैं। 


अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन् बाहुं शशिसूर्यनेत्रम्‌ ।

पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रंस्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम्‌ ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 19)


इस श्लोक का भावार्थ : आप अनादि है, अनन्त है और मध्य-रहित हैं, आपकी महिमा अनन्त है, आपकी असंख्य भुजाएँ है, चन्द्र और सूर्य आपकी आँखें है, मैं आपके मुख से जलती हुई अग्नि के निकलने वाले तेज के कारण इस संसार को तपते हुए देख रहा हूँ। 


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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