आज के ये श्लोक भी ग्यारहवें अध्याय 'विश्व रूप दर्शन योग' से ही लिए गए हैं। इन श्लोकों में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण का विराट रूप देखते हुए उसका वर्णन कर रहे हैं ....
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रंपश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिंपश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ॥
(अध्याय 11, श्लोक 16)
इस श्लोक का भावार्थ : (अर्जुन ने कहा) हे विश्वेश्वर! मैं आपके शरीर में अनेकों हाथ, पेट, मुख और आँखें तथा चारों ओर से असंख्य रूपों को देख रहा हूँ, हे विश्वरूप! न तो मैं आपका अन्त, न मध्य और न आदि को ही देख पा रहा हूँ।
किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम् ।
पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम् ॥
(अध्याय 11, श्लोक 17)
इस श्लोक का भावार्थ : मैं आपको चारों ओर से मुकुट पहने हुए, गदा धारण किये हुए और चक्र सहित अपार तेज से प्रकाशित देख रहा हूँ और आपके रूप को सभी ओर से अग्नि के समान जलता हुआ, सूर्य के समान चकाचौंध करने वाले प्रकाश को कठिनता से देख पा रहा हूँ।
आपका दिन मंगलमय हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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