🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏

मित्रों बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आज इस शृंखला की ये 180वीं कड़ी है यानि आज इस शृंखला को लगातार चलते हुए 180 दिन (6 माह) पूरे हो रहे हैं। 

आज के ये श्लोक भी ग्यारहवें  अध्याय  'विश्व रूप दर्शन योग' से ही लिए गए हैं ....

         ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनंजयः ।
         प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ॥

                    (अध्याय 11, श्लोक 14)

इस श्लोक का भावार्थ : उसके अनंतर आश्चर्य से चकित और पुलकित शरीर अर्जुन प्रकाशमय विश्वरूप परमात्मा को श्रद्धा-भक्ति सहित सिर से प्रणाम करके हाथ जोड़कर बोले।

अर्जुन उवाच -
पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान् ।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ- मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान् ॥
(अध्याय 11, श्लोक 15)

इस श्लोक का भावार्थ : अर्जुन बोले- हे देव! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवों को तथा अनेक भूतों के समुदायों को, कमल के आसन पर विराजित ब्रह्मा को, महादेव को और सम्पूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पों को देखता हूँ।

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत माथुर 
ग़ाज़ियाबाद।

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