🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों कल तक हम  श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय 'विभूति योग' से ही लिए गए श्लोक पढ़ रहे थे, इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अपने समस्त ऐष्वर्यो का वर्णन किया। 


आज से हम श्रीमद्भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय 'विश्व रूप दर्शन योग' के चुनिंदा श्लोक पढ़ेंगे। आज के श्लोकों में अर्जुन द्वारा भगवान श्री कृष्ण से उनके विश्वरूप के दर्शन के लिए  प्रार्थना की गई है .....


अर्जुन उवाच

मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम्‌ ।

यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 1)


इस श्लोक का भावार्थ : अर्जुन ने कहा - मुझ पर कृपा करने के लिए आपने जो परम-गोपनीय अध्यात्मिक विषयक ज्ञान दिया है, उस उपदेश से मेरा यह मोह दूर हो गया है। 


भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया ।

त्वतः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्‌ ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 2)


इस श्लोक का भावार्थ : हे कमलनयन ! मैंने आपसे समस्त सृष्टि की उत्पत्ति तथा प्रलय और आपकी अविनाशी महिमा का भी वर्णन विस्तार से सुना है। 


एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर ।

द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ॥ 

(अध्याय 11, श्लोक 3)


इस श्लोक का भावार्थ : हे परमेश्वर! इस प्रकार यह जैसा आप के द्वारा वर्णित आपका वास्तविक रूप है मैं वैसा ही देख रहा हूँ, किन्तु हे पुरुषोत्तम ! मैं  आपके ऐश्वर्य-युक्त रूप को मैं प्रत्यक्ष दर्शन करना चाहता हूँ। 


मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो ।

योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम्‌ ॥

(अध्याय 11, श्लोक 4)


इस श्लोक का भावार्थ : हे प्रभु ! यदि आप उचित मानते हैं कि मैं आपके उस रूप को देखने में समर्थ हूँ, तब हे योगेश्वर! आप कृपा करके मुझे अपने उस अविनाशी विश्वरूप में दर्शन दीजिए। 

आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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