🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों आज भी दो बहुत सुंदर श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय 'विभूति योग' से ही लिए हैं। इन श्लोकों में भी भगवान श्री कृष्ण अपने ऎश्वर्यों का वर्णन कर रहे हैं..


यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।

न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्‌ ॥ 

(अध्याय 10, श्लोक 39)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) - हे अर्जुन! वह बीज भी मैं ही हूँ जिनके कारण सभी प्राणियों की उत्पत्ति होती है, क्योंकि संसार में कोई भी ऎसा चर (चलायमान) या अचर (स्थिर) प्राणी नहीं है, जो मेरे बिना अलग रह सके।  


नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप ।

एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥ 

(अध्याय 10, श्लोक 40)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं) - हे परन्तप अर्जुन ! मेरी लौकिक और अलौकिक ऎश्वर्यपुर्ण स्वरूपों का अंत नहीं है, मैंने अपने इन ऎश्वर्यों का वर्णन तो तेरे लिए संक्षिप्त रूप से कहा है। 


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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