🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों आजके ये दो श्लोक भी  श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय 'विभूति योग' से ही लिए हैं। पिछले श्लोकों की तरह ही इन श्लोकों में भी भगवान श्री कृष्ण अपने ऎश्वर्यों का वर्णन कर रहे हैं..


वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः ।

मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥

(अध्याय 10, श्लोक 37)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) - वृष्णिवंशियों में (यादवों के अंतर्गत एक वृष्णि वंश भी था) वासुदेव अर्थात्‌ मैं स्वयं तेरा सखा, पाण्डवों में धनञ्जय अर्थात्‌ तू, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूँ।


दण्डो दमयतामस्म नीतिरस्मि जिगीषताम् ।

मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥

(अध्याय 10, श्लोक 38)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं) - मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात्‌ दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छावालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानों का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ।


आपका दिन मंगलमय हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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