🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏
मित्रों आज पुनः दो श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय 'विभूति योग' से ही लिए हैं। इन श्लोकों में भी भगवान श्री कृष्ण अपने ऎश्वर्यों का वर्णन कर रहे हैं...
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः॥
(अध्याय 10, श्लोक 35)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) - मैं सामवेद की गाने वाली श्रुतियों में बृहत्साम हूँ, मैं छंदों में गायत्री छंद हूँ, मैं महीनों में मार्गशीर्ष और मैं ही ऋतुओं में वसंत हूँ।
द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम् ॥
(अध्याय 10, श्लोक 36)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं) - मैं छलने वालों का जुआ हूँ, मैं तेजस्वियों का तेज हूँ, मैं जीतने वालों की विजय हूँ, मैं व्यवसायियों का निश्चय हूँ और मैं ही सत्य बोलने वालों का सत्य हूँ।
शुभ दिन !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
Post A Comment: