🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय 'विभूति योग' से लिए गए इन श्लोकों में भी भगवान श्री कृष्ण अपने ऎश्वर्यों का वर्णन कर रहे हैं ...


अक्षराणामकारोऽस्मि द्वंद्वः सामासिकस्य च ।

अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥ 

(अध्याय 10, श्लोक 33)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) - मैं सभी अक्षरों में ओंकार हूँ, मैं ही सभी समासों में द्वन्द्व हूँ, मैं कभी न समाप्त होने वाला समय हूँ, और मैं ही सभी को धारण करने वाला विराट स्वरूप हूँ।


मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्‌ ।

कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥ 

(अध्याय 10, श्लोक 34)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं) - मैं ही सभी को नष्ट करने वाली मृत्यु हूँ, मैं ही भविष्य में सभी को उत्पन्न करने वाली सृष्टि हूँ, स्त्रीयों वाले गुणों में कीर्ति, सोन्दर्य, वाणी की मधुरता, स्मरण शक्ति, बुद्धि, धारणा और क्षमा भी मै ही हूँ। 


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद

Share To:

Post A Comment: