🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों आज पुनः दो श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय 'विभूति योग' से ही लिए हैं। इन श्लोकों में भी भगवान श्री कृष्ण अपने ऎश्वर्यों का वर्णन कर रहे हैं ...


पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्‌ ।

झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥ 

(अध्याय 10, श्लोक 31)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) - मैं समस्त पवित्र करने वालों में वायु हूँ, मैं सभी शस्त्र धारण करने वालों में राम हूँ, मैं सभी मछलियों में मगर हूँ, और मैं ही समस्त नदियों में गंगा हूँ। 


सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।

अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्‌ ॥ 

(अध्याय 10, श्लोक 32)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं) - हे अर्जुन ! मैं ही समस्त सृष्टियों का आदि, मध्य और अंत हूँ, मैं सभी विद्याओं में ब्रह्मविद्या हूँ, और मैं ही सभी तर्क करने वालों में निर्णायक सत्य हूँ। 


शुभ दिन ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद

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